क्या वजह है कि भाजपा सिर्फ हिंदुत्व के नाम पर वोट लेना जानती है, हिंदुओं के लिए लड़ना उसे नहीं आता, या शायद लड़ना ही नहीं चाहती हैं। जितने भी ज्वलंत मुद्दे हैं, उन सब में प्रत्यक्ष प्रमाण है कि भाजपा ने कभी भी आधिकारिक रूप से अपना स्टैंड नहीं रखा है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बंगाल चुनाव के बाद बंगाल में हिंदुओं के विरुद्ध वहां के अल्पसंख्यकों ने हिंसा फैलाई। टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने भाजपा के कार्यकर्ताओं को खोज-खोज कर मारा और वहां के हिंदू मजबूर हो गए असम और बाकी पड़ोसी राज्यों में शरण लेने के लिए। लेकिन तब भी भाजपा के नेताओं ने सिर्फ ट्वीट के अलावा कुछ नहीं किया नहीं!, संसद में बवाल काटा नहीं, सड़कों पर उतरे नहीं, ना ही धरना प्रदर्शन किया, ना ही मार्च निकाला और ना ही किसी ने हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। ऐसे ही जब-जब हिंदुओं की नृशंस हत्या होती रही तब तक भाजपा और आर.एस.एस चुप्पी साधे रहे। चाहे वह कश्मीर में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार या दक्षिण के राज्यों में हो रहे हिंदुओं के प्रति धार्मिक आधार पर नफरत पे भाजपा हमेशा से खामोश रही हैं।
अभी ताजा उदाहरण राजस्थान के कन्हैया लाल की हत्या को लेकर देखें, तो किसी भाजपा के बड़े नेता ने इस पर कोई बड़ा बयान नहीं दिया, कोई धरना प्रदर्शन नहीं हुआ, जब कभी भी हिंदुओं को मारा काटा गया है, भाजपा ने बस मौन साधा हैं, और कुछ चुनिंदा नेता जो कि सिर्फ सोशल मीडिया को ही पूरी दुनिया समझते हैं, क्षेत्र में कभी जिनको जाना नहीं होता है, वैसे नेताओं के द्वारा सांत्वना के लिए ट्वीट करवाए गए थे। अब यह पता नहीं चलता कि ट्वीट करने से होगा क्या।
अभी का ट्रेंड है, फैशन है, तो सभी ट्वीट कर लेते हैं, लेकिन अभी का बहुत ही ज्वलंत मुद्दा, जिसमें कि संसद के पटल पर खड़े होकर पूर्व अभिनेत्री और शायद अभी भी अभिनय का अच्छा शौक रखने वाली स्मृति ईरानी ने बहुत जोरदार भाषण दिया और ऐसा ही उन्होंने रोहित वेमुला के आत्महत्या के बाद दिया था। कोई बच्चा भी संसद टीवी पर उनके इस वीडियो को देखेगा तो समझ जाएगा कि मोहतरमा अभिनय कर रही हैं और एक्टिंग से संन्यास लेने के बाद भी उनमें अभी एक अभिनेता जिंदा है।
अगर इस बार की बात करें, तो कांग्रेस के सदन नेता और बंगाल से आने वाले अधीर रंजन चौधरी जो कि एक धरने पर बैठे थे और क्योंकि वह बांग्ला भाषी हैं, हिंदी में उतने स्पष्टता उनको महसूस नहीं होती हैं, तो उन्होंने राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कह दिया, जबकि यह एक कोई बड़ी बात नहीं है। हिंदी भाषा में स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दो ही लिंगो का वर्णन है, जबकि संस्कृत में तीन और इंग्लिश में 4 लिंग हैं। इस वजह से हिंदी में इन सब चीजों की दिक्कत आती है और राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी कहने से क्या अपमान जाहिर होता है यह तो मालूम नहीं। और शायद स्मृति ईरानी जी जवाब दें कि पितृसत्तात्मक सोच के वजह से राष्ट्र का पति होना बड़ी बात है और अगर कोई राष्ट्र की पत्नी हुई तो यह शर्म की बात है...! तो कहीं उनके कहने का यह मतलब तो नहीं ? अगर किसी गैर हिंदी भाषी ने कुछ गलत कह दिया हो हिंदी में, तो उसको अनदेखा कर देना चाहिए, उसी प्रकार जिस प्रकार हिंदी भाषी इंग्लिश में कुछ त्रुटि करते हैं और समझते हैं कि उसको अनदेखा कर दिया जाए।
हमें तो दिल खोलकर स्वागत करना चाहिए अधीर रंजन और ऐसे नेताओं का जो कि दूसरे प्रांत और भाषाओं से होने के बावजूद भी हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं। इससे हिंदी भाषा की प्रभुता का बखान होता है, लेकिन हम हिंदी भाषियों ने ही हिंदी का अपमान इतना कर दिया है और ऐसे संकीर्णता से हिंदी को भर दिया है, कि कोई गैर-हिंदी भाषी हिंदी को प्रयोग करने से भी अगली बार डरेगा।
कांग्रेस के सदन नेता ने बस इतना कहा कि राष्ट्रपति जी सब के हैं, "हम राष्ट्रपत्नी जी से मांग करते हैं" और बस इसी बात पर पूरी भाजपा उबल उठी, भाजपा शासित राज्यों में विधानसभाओं से निंदा प्रस्ताव पास होने लगे, संसद के दोनों सदनों में भाजपा के सांसदों ने बवाल काटा। भाजपा के कई सौ कार्यकर्ता सड़क पर उतर गए और कितने ही कार्यकर्ताओं ने अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ केस दर्ज करवाएं। मैं पूछता हूं कि यह उबाल, यह कचोटन हिंदुओं के हत्याओं पर क्यों नहीं होता है। क्यों हिंदुओं की हत्याओं पर भाजपा, संघ और मोदी मौन रहते हैं।
क्या वजह है कि भाजपा सिर्फ हिंदुत्व के नाम पर वोट लेना जानती है, हिंदुओं के लिए लड़ना उसे नहीं आता, या शायद लड़ना ही नहीं चाहती हैं। जितने भी ज्वलंत मुद्दे हैं, उन सब में प्रत्यक्ष प्रमाण है कि भाजपा ने कभी भी आधिकारिक रूप से अपना स्टैंड नहीं रखा है। वह हमेशा दबी कुचली जवानों से बोलती है। छोटे-मोटे नेताओं से बयान दिलवा देती है। जवान फिसलने पर अगर भाजपा इतना बोल सकती है, तो हिंदुओं की हत्याओं पर भाजपा क्यों नहीं बोलती?, क्यों नहीं संसद में हंगामा करती है? क्यों नहीं विधानसभाओं से निंदा प्रस्ताव पास होते हैं? क्यों नहीं धरना प्रदर्शन होते हैं? क्यों नहीं हर राज्य से केस होना शुरू हो जाते हैं? शायद भाजपा चाहती है कि हिंदू मरे और हिंदुओं के नाम पर वोट मांगते रहे। क्योंकि लगभग 10 वर्षों से भाजपा का शासन है और अभी भी हिंदुओं की हालत कुछ ठीक नहीं हुई है।
हिंदू पहले की तरह ही अपने त्योहारों व्रत और पूजा पाठ पूरी स्वतंत्रता से नहीं कर सकते हैं। और यही कारण है कि भाजपा का यह दोगलापन सबके सामने आ जाता है। क्योंकि इसको वोट तो हिंदुओं का लेना है, लेकिन हिंदुओं के लिए कुछ करना नहीं है। अगर भाजपा को हिंदुओं और अपने कार्यकर्ताओं से सहानुभूति होती, तो बंगाल हिंसा के बाद भाजपा बंगाल के सड़कों पर उतरती, बंगाल के नेताओं पर केस दर्ज होते हैं, भाजपा संसद में विरोध प्रदर्शन करती है, राज्यसभा और लोकसभा में टीएमसी के सांसदों का घेराव करती, ममता बनर्जी का पुतला फूंकती। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, शायद राजनीतिक तौर पर इसकी फिक्सिंग पहले ही हो चुकी थी। और मासूम हिंदुओं को विस्थापित और हत्या के लिए वहां भाजपा ने अकेला छोड़ दिया। इससे सबक मिलता है, किसी पार्टी या संगठन के भरोसे रहना ठीक नहीं, समाज को खुद के पैरों पर खड़ा होना सीखना हो होगा।