वैश्विक पटल पर सिमटती जा रही है, अभिव्यक्ति की आजादी;

 अभिव्यक्ति की आजादी मानव के मानवता कि जीवन्तता को दर्शाती है, क्योंकि अगर एक मनुष्य अपने विचारों को समाज के समक्ष प्रकट नहीं कर सकता, तो वह कैसे अपने को सामाजिक प्राणी कह सकता है?

वैश्विक पटल पर सिमटती जा रही है, "अभिव्यक्ति की आजादी "

अभिव्यक्ति की आजादी मानव के मानवता कि जीवन्तता को दर्शाती है, क्योंकि अगर एक मनुष्य अपने विचारों को समाज के समक्ष प्रकट नहीं कर सकता, तो वह कैसे अपने को सामाजिक प्राणी कह सकता है? अभिव्यक्ति की आजादी आज पूरे विश्व में डामाडोल स्थिति में है, चाहे वह अमरीका हो, इंग्लैंड हो, ऑस्ट्रेलिया या फिर हमारा प्यारा भारत, हर जगह अभिव्यक्ति की आजादी के लिए लोग जद्दोजहद कर रहे हैं। लोग संघर्षशील हैं अपनी अभिव्यक्ति को प्रकट करने के लिए।

 अगर हम भारत का संदर्भ ले तो भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश हैं जहां विभिन्न धर्म, जाति और भाषा के लोग रहते हैं। जहां की संस्कृति स्वतंत्रता और स्वच्छंदता पे टिकी है। जहां हमेशा से वेदो और उपनिषदों के मंत्र और रिचायें पढ़े जा रहे हो, पुराणों की विवेचना की जा रही हो, महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथ कंठस्थ हो, वैसे विशाल देश के विशाल हृदय वाले नागरिकों के अंदर यह बढ़ती असहिष्णुता, एक प्रश्न चिन्ह पैदा करती है। क्या हम अपनी संस्कृति को बचाने का ढोंग करते-करते अपनी ही अपनी संस्कृति का विनाश कर रहे हैं? क्योंकि अगर दुनिया में हम जाने जाते हैं तो गांधी और बुद्ध के शांति और अहिंसा के कारण, हम जाने जाते हैं महावीर के मानवता के कारण, हम जाने जाते हैं कृष्ण के गीतोपदेश के कारण और हम जाने जाते हैं मीरा की भक्ति के कारण। अब हम इतने निर्लज्ज हो चले हैं कि हमें अपने पूर्वजों और संस्कृति का कोई आभास नहीं रहा है।

समाज में बढ़ती जा रही असहिष्णुता;

 छोटी-छोटी बातों पर अब हम एक दूसरे का गला काटने लगे हैं। और तो और गला काटने वाले को पुरस्कृत भी करते हैं। जबकि हमारी यह संस्कृति सत्य -अहिंसा की है और इसी वजह से समृद्धि हमारे पास है और प्रसिद्धि भी। कोई राष्ट्र अपनी संस्कृति, सामाजिक बनावट और इतिहास को भूलकर आगे बढ़ने की चेष्टा करता है, तो वह खुद में राष्ट्र नहीं रह पाता और उसकी उम्र बहुत ज्यादा नहीं होती, वह जल्द ही विखंडित हो जाता है। जब हमारा देश स्वतंत्रता के उजाले कि रोशनी से नहा रहा था, तब हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने जिस संविधान की रचना की थी, उसमें अभिव्यक्ति की आजादी को भी स्थान दिया था एवं अच्छे से इसकी विवेचना भी की थी। भारतीय संविधान के आर्टिकल 19 पूर्णता चीख-चीख कर कहता है कि हर भारतवासी को अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करने की पूरी स्वतंत्रता है और कोई भी बिना किसी को ठेस पहुंचाए अपनी बातों को रख सकता है और सभी के साथ साझा कर सकता है।

 लेकिन आज हम देखते हैं कि चाहे वह दक्षिण पंथ हो या वामपंथ दोनों तरफ से कुछ भी बोलने पर गिरफ्तारी और गर्दन काटने की मांग हो जाती है। उदाहरण के तौर पर कुछ दिन पहले छद्म वामपंथी और इस्लामिक पत्रकार जुबेर की गिरफ्तारी होती है उस पर हिंदू देवी-देवताओं के अपमान और हिंदू भावना से खिलवाड़ करने का आरोप लगा था। वहीं दूसरी तरफ मुख्यधारा के पत्रकार रोहित रंजन जो कि ज़ी मीडिया के पत्रकार हैं, उनको भी गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान को तोड़ मरोड़ कर गलत ढंग से पेश किया। 

यह साफ दर्शाता है भारत में असहिष्णुता कितने बुरे तरीके से फैल चुका हैं। उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया और आरोप था कि दोनों ने उकसाने वाले बयान दिये। अब प्रश्न यह खड़ा होता है कि हम कैसे देश की परिकल्पना कर रहे हैं, जहां पे आंख के बदले आंख निकालने का माहौल बन रहा हो, जहां एक दक्षिणपंथी वामपंथी को गिरफ्तार करवाता हो और एक वामपंथी दक्षिणपंथी को। ऐसे माहौल में हम कैसे अपने देश को सहिष्णु और शांतिप्रिय कह सकते हैं। हम कैसे वेदों और उपनिषदों की रिचाओ को इस देश में उच्चारित कर सकते हैं? अभी यह प्रश्न हम सभी के समक्ष ज्वलंत है कि हम कैसे समाज की रचना कर रहे हैं?

 एक बार सोचिएगा जरूर.......

2 टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. आदरणीय वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. मनोज दयाल सर, आपके व्यक्तित्व से हमें उसी प्रकार प्रकाश प्राप्त होता है जैसे पृथ्वी को सूरज से।
      गुरुवर आशीर्वाद बनाए रखें।🙏🌷🙏

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