मोदी सरकार अब आटा, दाल, चावल, दही, लस्सी और अन्य सब रोजमर्रा की जरूरी खाद्य पदार्थों पर भी जीएसटी लगाएगी। सरकार की अर्थव्यवस्था को लेकर दृष्टिकोण शुरू से ही "हास्यास्पद" और "विवादास्पद" रहा हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था चौपट होने के कगार पर है।
वर्तमान की केंद्र सरकार ने बहुत जोर-शोर से जीएसटी को लागू किया था और जरूरत की खाद्य सामग्री, दवाइयां और जीवन रक्षक उपकरणों पर जीरो जीएसटी लगाकर अपनी पीठ भी थपथपाई थी। मगर बढ़ती महंगाई और घटते रोजगार के दबाव में आकर वर्तमान की मोदी सरकार अब आटा, दाल, चावल, दही, लस्सी और अन्य सब रोजमर्रा की जरूरी खाद्य पदार्थों पर भी जीएसटी लगाएगी। जिसका सीधा प्रभाव निम्न और मध्यम वर्ग पर पड़ेगा।
रुपया में लगातार आ रही है गिरावट:
जीडीपी का सिकुड़ना, बेरोजगारी का बढ़ना और भारतीय रुपया का डॉलर के मुकाबले दिन पर दिन कमजोर होते हुए $1 के मुकाबले रुपया ₹80 पहुंचना, जो की इतिहास के निम्न स्तर पर है, यह सभी परिस्थितियां हमें मंदी की ओर ले जाती दिख रही है। जिसके लिए अभी से ही कमर कसने की जरूरत है। सरकार अब ज्यादा से ज्यादा टैक्स के माध्यम से पैसा कमाना चाहती है। और खर्च करने के लिए पैसे का इंतजाम करना चाह रही हैं। क्योंकि घटते रोजगार के कारण सर्विस टैक्स सरकार अब कम वसूल पा रही है, इसीलिए उसने जरूरत के खाद्य सामग्रियों पर भी अब टैक्स लगा दिया है।
आम इंसान पर बढेगा आर्थिक बोझ:
एक आम इंसान जो की सर्विस करता हो, उसका तो जीवन ही टैक्स भरते भरते निकल जाता है। मान लीजिए किसी एक व्यक्ति ने 12 महीने में मेहनत करके पैसे कमाए तो फिर बारहवें महीने की सैलरी तो टैक्स में ही कट जाती है और बची हुई सैलरी तेल, साबुन, सर्फ, जूता, कपड़ा, सोफा, पलंग, घर, जमीन, जायदाद, सोना, दवाइयां और यहां तक कि जो अन्य सेवाएं हैं जैसे कि रेस्टोरेंट्स हो या फिर अस्पताल इन सब के ऊपर हम जीएसटी और सर्विस टैक्स हमें देना होता हैं।
इस प्रकार देखा जाए तो एक आम इंसान का सारा जीवन टैक्स भरते-भरते निकल जाता है और उसके बदले में उसको मिलता क्या है? उसे मिलता है तो सिर्फ निराशा, सड़के जो गड्ढों में तब्दील हो चुके हैं, स्ट्रीट लाइट्स जो कि खराब हो चुकी हैं, भ्रष्ट अधिकारी-डॉक्टर और पुलिस और भ्रष्ट व्यवस्था। इसके अलावा एक आम इंसान को आखिरकार सरकार से मिलता क्या है? जोर शोर से जीएसटी और नोटबंदी का चुनाव में प्रचार करने वाले हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री आज खामोश है। क्योंकि उन्हें अब पता चल गया कि यह "मास्टर स्ट्रोक" नहीं "डिजास्टर स्ट्रोक" था। जिसने की भारतीय अर्थव्यवस्था को अपाहिज बना दिया और आज भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय रुपया व्हीलचेयर पर बैठे हुये हैं और अब सरकार उनको धक्का देने की कोशिश कर रही है।
सरकार की अर्थव्यवस्था को लेकर दृष्टिकोण शुरू से ही "हास्यास्पद" और "विवादास्पद" रहा हैं। भाजपा के ही सांसद रहे और देश और विदेश के बहुत बड़े अर्थशास्त्री सुब्रमण्यम स्वामी, जो कि अपनी बेबाक बात रखने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अर्थव्यवस्था को लेकर हर कदम पर सरकार की आलोचना की थी। उन्होंने हमेशा सरकार को अवगत कराया कि कौन सी स्कीम चलानी चाहिए, कौन सी बंद करनी चाहिए, क्या करना चाहिए जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सके और भारत में खुशहाली, रोजगार और शिक्षा की बहार आये। लेकिन देश के प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से पढ़ी, हमारी देश की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने उनकी एक न सुनी और भारतीय अर्थव्यवस्था की कब्र खोदने में लग गई। और आज पूरी तरह से अर्थव्यवस्था को दफन करने की ओर अग्रसर हैं। हमारे समक्ष श्रीलंका, नेपाल और बहुत सारे उदाहरण हैं, जिससे हमें सीख लेनी चाहिए और जो गलतियां हुई है उसको सुधारना चाहिए। जिससे हम अपने देश और देश की अर्थव्यवस्था को बचा सके क्योंकि आज के इस भौतिकवादी युग में "अर्थ" ही है, जिसकी "व्यवस्था" हर जगह काम आती है। और "जिसके पास अर्थ नहीं है उसका अनर्थ होते देर नहीं लगता"।