समाज को चुनौती देने वाली एवं ललकारती हुई जटिल समस्याओं ,विषम संकटों, मर्मस्पर्शी व्याधियों व गंभीर उलझनों पर ही शोध की जानी चाहिए।
हिसार: 19 जुलाई :समाज के बहुमुखी विकास में शोध की अहम भूमिका होती है ।शोध किसी भी समस्या को गहनता से समझने का प्रयास करता है। और तदनरूप समाधान व सुझाव भी प्रस्तुत करता है। इसलिए शोध चाहे कृषि विज्ञान की हो,या किसी अन्य विषय की, समाज को चुनौती देने वाली एवं ललकारती हुई जटिल समस्याओं ,विषम संकटों, मर्मस्पर्शी व्याधियों व गंभीर उलझनों पर ही शोध की जानी चाहिए।
उक्त विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय की कृषि शोध एवं शिक्षा प्रबंधन अकादमी द्वारा आयोजित रिफ्रेशर कोर्स में गुरू जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन संकाय के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ मनोज दयाल ने देश भर से आए हुए नवनियुक्त वैज्ञानिकों को "शोध प्ररचना: सार्थकता एवं महत्व" विषय पर बतौर संसाधन सेवी के रूप में संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
प्रो. दयाल ने कृषि में आर्थिक मंदी एवं भारतीय कृषकों की ऋण ग्रस्तता की व्यथा कथा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शोध की समस्या का चुनाव करते समय हमें ऐसे विषय चुनने चाहिए ,जो न केवल पुस्तकालय की शोभा बनकर रह जाए, बल्कि जो समाज उपयोगी, राष्ट्र उपयोगी एवं विश्व उपयोगी सिद्ध हो सके। शोध प्ररचना की सार्थकता व महत्ता की विभिन्न चरणों पर प्रकाश डालते हुए, प्रो. दयाल ने बताया कि शोध समस्या, शोध उद्देश्य एवं शोध प्रविधि के उचित निर्धारण से शोध की सटीक दशा व दिशा तय होती है जो अंततोगत्वा कृषि संबंधी, औद्योगिक सामाजिक, आर्थिक ,राजनीतिक सांस्कृतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक व मीडियाई समस्याओं के निराकरण में कारगर सिद्ध होती है। प्रो. दयाल ने कहां कि आज किसानों की समस्या इतनी जटिल हो गई है कि भारत का किसान कर्ज में पैदा लेता है, कर्ज में जीता है और कर्ज में ही मर जाता है। प्रो.दयाल ने कहा कि शोध वैषयिक अथवा विषयगत सीमाओं में बंध जाता है तो वह समाधान उन्मुख नहीं होता। शोध को अंतर वैषयिक, बहु वैषयिक एवं ट्रांस वैषयिक दृष्टिकोण अपनाते हुए ही किया जाना चाहिए ताकि वह शोध समाज में परिव्याप्त समस्याओं के निराकरण में उपयोगी ,प्रासंगिक, महत्वपूर्ण व सार्थक सिद्ध हो सके। इस अवसर पर किसान विकास केंद्र झज्जर के वैज्ञानिक डॉ. देशराज चौधरी ने कहा कि शोध की बढ़ती हुई चुनौतियों पर गहन मंथन करने की आवश्यकता है ।डॉ चौधरी ने सामाजिक व अन्य समस्याओं एवं उलझनों से निपटने के लिए सतही दृष्टिकोण की जगह शोधीय विश्लेषण की महत्ता की वकालत की ।उन्होंने शोध की बढ़ती हुई चुनौतियों को व्यवस्थित एवं विधिवत तरीके से आँकन करने पर विशेष बल दिया ।
इस अवसर पर हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. आर के यादव, कृषि शोध एवं शिक्षा प्रबंधन अकादमी की संयुक्त निदेशिका डॉ मंजू नागपाल मेहता एवं सहायक निदेशिका डॉ अंजू शहरावत भी मौजूद थी।