भारतीय संदर्भ में समाचार को पुन: परिभाषित करने की जरूरत : प्रो. दयाल

पश्चिम के दृष्टिकोण में भौतिक सुख को केंद्र माना गया है ,जबकि भारतीय दृष्टिकोण में आध्यात्मिक सुख को केंद्र माना गया है।


Professor Manoj Dayal

भारत में समाचार की परिभाषा पश्चिम से ली गई है,जो नकारात्मकता पर आधारित है । इंग्लैंड के जॉन् बी बोगार्ड ने कहा था कि समाचार को उसी रूप में लिखना चाहिए ,जिस रूप में घटना है ।इसके परिणाम से हमें कुछ लेना देना नहीं है। परंतु पश्चिम की दृष्टिकोण से भारतीय दृष्टिकोण काफी भिन्न है। पश्चिम के दृष्टिकोण में भौतिक सुख को केंद्र माना गया है ,जबकि भारतीय दृष्टिकोण में आध्यात्मिक सुख को केंद्र माना गया है। यदि गिलास आधा खाली है ,तो यह भी सच है कि गिलास आधा भरा है। इसलिए पश्चिम के दृष्टिकोण को त्याग कर हमें भारत जैसे आध्यात्मिक एवं विकासशील देश के संदर्भ में समाचार को आज पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है।

 उक्त विचार हिसार स्थित गुरू जंभेश्वर विज्ञान एवं एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन संकाय के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ मनोज दयाल ने आज चौधरी बंसी लाल विश्वविद्यालय, भिवानी के मीडिया एवं संचार अध्ययन विभाग द्वारा आयोजित "मीडिया का बदलता स्वरूप" विषय पर एक संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में विभाग के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा।

 इस अवसर पर चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय के शैक्षिक मामलों के अधिष्ठाता व मीडिया एवं संचार अध्ययन विभाग के अध्यक्ष प्रो. आर के गुप्ता ने अपने विचार उद्गार व्यक्त करते हुए मीडिया के छात्रों के उज्जवल भविष्य की शुभकामना की, जबकि विभाग की शिक्षिका सुश्री उमा कुमारी शाह ने कार्यक्रम का संचालन किया।

 प्रो. दयाल ने कहा कि समाचार वह है जो सभी के प्रति सम(समान) आचार रखता है तथा समाचार में तथ्यपरकता, यथार्थवादिता, वस्तुनिष्ठता ,संतुलन तथा मर्यादा अवश्य ही होनी चाहिए। परंतु इनकी कमियां आज मीडिया के लिए एक बहुत बड़ी त्रासदी साबित होने लगी है।प्रो.दयाल ने परंपरागत मीडिया से लेकर से डिजिटल मीडिया तक के बदलते स्वरूप को उजागर करते इनकी सकारात्मक व नकारात्मक पहलुओं पर भी विचार प्रस्तुत किया ।प्रो. दयाल ने कहा कि पारंपरिक मीडिया जहां आत्मीय संचार करती है, वही मुद्रण मीडिया स्थिर (अचल )संचार करती है।इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जहां चल मीडिया है, वही डिजिटल मीडिया द्विस्वभाव (चल व अचल) है ।डिजिटल मीडिया जैसे यूट्यूब ,फेसबुक ,व्हाट्सएप, टि्वटर ,ब्लॉग,पॉडकास्टिंग, आदि जितनी ज्ञान देता है,उतनी ही अज्ञानता भी फैलाता है।डिजिटल मीडिया से उदित नागरिक पत्रकारिता पर प्रकाश डालते हुए प्रो. दयाल ने कहा कि यदि हर नागरिक पत्रकार, डॉक्टर ,वकील पेंटर ,आदि बन जाए ,तो इससे धीरे-धीरे व्यावसायिकता का ह्रास होने लगता है ।डिजिटल मीडिया का कोई गेटकीपिंग नहीं होने के कारण कई बार यह दिशाहीन भी हो जाता है। अतः समाज में एक असामंजस्य की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ,जबकि मीडिया का काम त्वरित गति से बदलते हुए समाज में उठने वाले अनेक विकल्प से जन-जन को मुक्त करना एवं दिशा प्रदान करना है। समाचार एवं गैर समाचार मीडिया का जिक्र करते हुए प्रो.दयाल ने बताया कि समाचार मीडिया जहां दर्पण का काम करता है, वहीं गैर समाचार मीडिया दीपक बनकर हमें अंधेरा से प्रकाश, कुमार्ग से सुमार्ग एवं अधर्म से धर्म की ओर ले जाता है।

 इस अवसर पर उपस्थित शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने भी अपनी-अपनी बहुआयामी जिज्ञासाएं व्यक्त की जिनको प्रो. दयाल ने अपने विमर्श व उत्तर से तृप्त किया।

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